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कामरेड और गांधी को चुनौती दे रहा है चायवाला “चौकीदार”

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(लवनीश आर अग्रवाल द्वारा)
भारतीय राजनीति में राजनीतिक दल मतदाताओं को लुभाने के लिए उपमा फार्मूले का इस्तेमाल सदियों से करते आ रहे हैं। कांग्रेस पार्टी ने इंदिरा के साथ “गांधी” जुड़ा होने का लाभ उठाया है। वहीं कम्युनिस्ट पार्टी ने “कामरेड” फार्मूले का इस्तेमाल किया है। भाजपा की पहचान भी “चड्डे” के रूप में रही है। मोदी के केंद्रीय राजनीति मैं आने के पहले तक भाजपाइयों को इसी नाम से पहचाना जाता था लेकिन जब से मोदी के कदम केंद्र सरकार की ओर बढ़े तब से भाजपाइयों की उपमा “चड्डे” छुपने लगी है। मोदी ने चायवाला के रूप में 2014 में आगाज किया और सफलता हासिल करते हुए सत्ता प्राप्त कर ली।
2019 में मोदी ने फिर एक बार नया शगुफा मतदाताओं को लुभाने के लिए छोड़ा है इस बार मोदी चायवाला कम और “चौकीदार” बनकर चुनावी मैदान में अपनी टीम के साथ है। भाजपा ने “मैं भी चौकीदार हूं” की उपमा अपने कार्यकर्ताओं के नाम के साथ जुड़वा कर चुनाव को गरमाहट दी है जहां एक और भाजपा “मैं भी चौकीदार हूं” के बैनर तले सत्ता प्राप्त करने के लिए लालायित है वहीं दूसरी ओर कांग्रेश और अन्य राजनीतिक दल “चौकीदार चोर है” के नारे के साथ भाजपा के मोदी को रोकने का प्रयास कर रहे हैं।
यहां पर समझने और जानने योग्य बात यह है कि कम्युनिस्ट पार्टी के कामरेड बनने के क्या मायने..
कामरेड का जो अर्थ अभी तक देखने को मिला है वह यह कि कम्युनिस्ट नेता जब भी कहीं लाभ के पद पर आसीन हुआ है उसे अपना भत्ता और वेतन संगठन को जमा कराना पड़ता है ऐसे कम्युनिस्ट को सिर्फ जरूरत के खर्च को पार्टी देती है। वैसे कम्युनिस्ट पार्टी एक क्षेत्रीय दल के रूप में ही अपनी पहचान बना पाई है पश्चिम बंगाल में कम्युनिस्ट पार्टी का प्रभाव रहा है। इधर महात्मा गांधी के द्वारा इंदिरा जवाहरलाल नेहरू को गांधी की उपमा दिए जाने के बाद इंदिरा ने अपने नाम के साथ गांधी जोड़ लिया था। तब से इंदिरा गांधी के रूप में वे विख्यात हुई जबकि इंदिरा नेहरू फिरोज से शादी के बाद इंदिरा फिर भी गांधी ही हुई लेकिन इंदिरा अपने नाम के साथ पति का सरनेम ना लगाते हुए गांधी ही जोड़े रखा। और यह फॉर्मूला इस परिवार के साथ आज तक देखने को मिल रहा है। इंदिरा गांधी के बेटे राजीव और संजय गांधी ही कहलाए। और अब राजीव तथा संजय गांधी के बेटे बेटी भी अपने नाम के साथ गांधी को जोड़कर रखे हुए हैं राजीव गांधी के पुत्र राहुल गांधी है और पुत्री प्रियंका है जिनका विवाह हो चुका है किंतु वह आज भी अपने नाम के साथ “गांधी” ही जोड़ कर चल रही है। जिसका लाभ हमेशा इस परिवार के द्वारा राजनीतिक रूप में उठाया जा रहा है ऐसे में भाजपा की चक डे के रूप में बनी हुई पहचान जब चाय वाले के रूप में विख्यात हुई और अब देखते ही देखते मैं भी चौकीदार हूं के रूप में इस चुनावी समर में भीषण गर्मी के साथ राजनीतिक गर्माहट बनाए हुए हैं। इससे एक बात तो स्पष्ट हो गई है कि भाजपा समय-समय पर अपनी पहचान के साथ बदलाव के नित्य नए प्रयोग कर रही है।