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उज्जैन के गोवर्धन सागर की भूमि शासकीय घोषित, दोषी अधिकारी और कर्मचारियों पर कार्रवाई के आदेश पारित

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उज्जैन /(म0प्र0) के विद्वान व्यवहार न्यायालय श्रीमान गौरव अग्रवाल, प्रथम व्यावहार न्यायधीश वर्ग-1, उज्जैन द्वारा दिनंाक 19.07.2019 को एक महत्वपूर्ण शासकीय भूमि के निर्णय को पारित करते हुये उज्जैन शहर के मध्य स्थित गौवर्धन सागर की भूूमि को शासकीय भूमि को घोषित करते हुये भूमि पर से अनिल पिता मन्नूलाल जोशी का दावा निरस्त किया गया तथा न्यायालय में शासन की ओर से जानबूझकर दस्तावेज न पेश करने के कारण संबंधित अधिकारियों एवं कर्मचारियों के विरूद्ध जांच कर कार्यवाही किये जाने के निर्देश कलेक्टर उज्जैन को दिये गये।
उप-सचांलक (प्रशासन) डॉ. साकेत व्यास ने बताया कि उज्जैन शहर के बीचो-बीच स्थित सप्त सरोवर में से एक गौवर्धन सागर स्थित है जो वर्तमान में भी तालाब की ऐतिहासिक के रूप में है। गौवर्धन सागर की कुल लगभग 40 बीघा भूमि थी, जिसका सर्वे क्रमांक 1281 है, उक्त भूमि के सर्वे क्रमांक पर अनिल पिता मन्नूलाल जोशी द्वारा बिना किसी सरकारी आदेश के अपना नामांतरण करवा लिया गया था। वर्ष 2015 में जब कलेक्टर कार्यालय से नामातंरण कि जांच प्रारंभ हुई तो इस हेतु अपर कलेक्टर महोदय के न्यायालय में प्रकरण क्र0 01/अ-39/14-15 दर्ज किया गया। संबंधित व्यक्तियों से नामांतरण के स्वत्व प्रमाण मागें गये तब अनिल पिता मन्नूलाल जोशी ने दीवानी न्यायालय में दावा प्रस्तुत कर गोवर्धन सागर की भूमि को निजी बताया गया। सिविल न्यायालय ने अपने निर्णय को निर्णित करने के पूर्व इस तथ्य को कि अनिल जोशी के पिता द्वारा वर्ष 1974 में ही सर्वे कंमाक 1281 में से लगभग 34 बीघा से अधिक की भूमि को विक्रय कर दिया गया था। जबकि सारी भूमि गोवर्धन सागर की शासकीय भूमि होकर तालाब की भूमि थी और सरकारी भूमि को विक्रय किया गया है। इस तथ्य को जब सबसे पहले तत्कालिन विद्वान शासकीय अभिभाषक राकेश गेहलोत द्वारा प्रस्तुत जबाव दावे में ध्यान में लाया गया। माननीय न्यायालय द्वारा यह निष्कर्ष दिया कि अनिल जोशी के पिता का नामातंरण वैध आदेश से नहीं हुआ है। यह महत्वपूर्ण बिन्दु यह भी है कि न्यायालय में शासन का पक्ष रखने वाले अधिकारी कर्मचारियों ने न्यायालय में यह बयान दिया कि रिकार्ड शाखा में वर्ष 1928 से 1962-63 के खसरा उपलब्ध नही है जबकि स्वंय अनिल जोशी की ओर से न्यायालय में वर्ष 1951-52 की खसरा नकल रिकार्ड शाखा से प्रस्तुत की गई। जबकि न्यायालय द्वारा यह अपने निर्णय में यह निष्कर्ष दिया गया कि यह जांच का विषय है कि स्वंय कलेक्टर कार्यालय को अभिलेख क्यों उपलब्ध नही हो पाया जबकि समस्त अभिलेख कलेक्टर के अधीन रहता है। इसलिये श्रीमान गौरव अग्रवाल द्वारा कलेक्टर उज्जैन को इस कृत्य की जांच कर संबंधित दोषी कर्मचारी को चाहे वह सेवारत हो या सेवानिवृत्व हो के विरूद्ध जांच कर कार्यवाही के आदेश जारी किये गये है तथा न्यायालय द्वारा अपने निर्णय में यह भी उल्लेख किया गया कि अनिल जोशी और उसके पूर्वजों द्वारा शासकीय तालाब की भूमि को विक्रय किया गया है।
विचारण न्यायालय द्वारा शासन की ओर से अति0 शासकीय अभिभाषक मनीष गोयल द्वारा प्रस्तुत अंतिम तर्कों से सहमत होकर वादी अनिल जोशी का दावा शासन के पक्ष में करते हुये निरस्त किया गया। प्रथम अतिरिक्त व्यवहार न्यायाधीश श्री गौरव अग्रवाल ने अभिनिर्णित अपने इस महत्वपूर्ण निर्णय में शासकीय अभिलेखों (दस्तावेजों) को संरक्षित किये जाने की गंभीरता से लिये जाने के निर्देश भी दिये है। ताकि भविष्य में सरकारी जमीनों पर भू-माफियों के कब्जे ओर अनावश्यक राजस्व से प्राप्त अवैधानिक दस्तावेजों ओर प्राचीन अभिलेखों के साथ छेडखानी संबंधित विभाग न कर सके। यह भी सुनिश्चित हो सके।