हज तरबियत कैम्प में सिखाई दुआ व अरकान
इंदौर/ हज का मक़सद यही है कि बन्दा गुनाहों से सच्ची तौबा कर ताउम्र नेकी के रास्ते पर चले। ये इज़हारे ख़्याल मुफ़्ती-ए- मालवा हज़रत मौलाना वलीउल्लाह नदवी साहब ने हज तरबियत कैम्प में हज यात्रियों से मुख़ातिब होते हुए कहे।कैम्प का आगाज़ तिलावते क़ुरआन और नाते पाक के साथ हुआ।इस मौक़े पर शहर क़ाज़ी अबु रेहान फ़ारूक़ी, मौलाना जमील नदवी, मुफ़्ती मज़हर नदवी और मौलाना अनवारुल हक़ ने भी विचार रखे। मुफ़्ती-ए-मालवा हज़रत मौलाना वलीउल्लाह नदवी साहब ने हज यात्रियों को हज की बारीकियां समझाते हुए फ़रमाया कि
हाजी को हज के बाद बहुत ही पाक, साफ-सुथरी और दीन पर अमल करके जिंदगी गुजारनी चाहिए, क्योंकि हज के बाद हाजी से हर कोई यह उम्मीद करता है कि उसके अंदर रूहानी इंकलाब आए व हज के बाद उसकी जिंदगी में बदलाव नुमाया होने चाहिए। युसुफ लाला ने बताया कि हज में आसानी पैदा करने के उद्देश्य से हज यात्रियों के मार्गदर्शन भी दिया गया और हज के अरकान भी समझाये।
शहर काजी अबु रेहान फ़ारूक़ी ने कहा हाजी जब हज के लिए घर से निकलता है, तो वह अल्लाह का मेहमान हो जाता है। हाजी से अल्लाह ताला यह फरमाता है, ‘ऐ बंदे, तूने अपना सब कुछ, घर-बार, वतन, अपनी औलाद मेरी वजह से छोड़ा है। तू जो मांगेगा, मैं अता करूँगा।’
उन्होंने बताया कि फरिश्ते हाजियों का इस्तकबाल करते हैं।अल्लाह की रहमतें उन पर बरसाते हैं। जब हाजी मक्का ए मुकर्रमा में बैतुल्लाह शरीफ का तवाफ (चक्कर लगाना) करता है, तो उस पर अल्लाह की खास मेहरबानी होती है। यहां पर एक नमाज पढ़ने का सवाब (पुण्य) एक लाख नमाजों के बराबर होता है। दुनियाभर में इससे पाक जगह नहीं है, जहां अल्लाह का घर है।मौलाना जमील नदवी साहब ने निज़ामत (संचालन) की। शुरुआत में युसुफ लाला ने “है नज़र में जमाले हबीबे ख़ुदा” नात सुनाई।
इस हज तरबियत कैम्प में सलीम भाई दूध वाले, शकील अंसारी, ज़हीर पाशा,पप्पू खिलजी, सईद भाई पान वाले, नासिर मुन्ना, सोहेल पालवाला, अली अकबर भाई, गोगा कुरैशी, साबिर भाई पासपोर्ट वाले आदि ने इंतज़ामात में मदद की।आखिर में युसुफ लाला ने सभी का शुक्रिया अदा किया। कैम्प में महिलाएं भी मौजूद थीं। तरबियत कैम्प कामयाब रहा क्योंकि बड़ी तादाद में हज यात्रियों ने इसमें शिरकत की।