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धार्मिक धरोहर गोवर्धन सागर तालाब घोषित

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,✍️राजकुमार अग्रवाल✍️

उज्जैन/ धार्मिक एवं पौराणिक महत्व रखने वाली उज्जैन नगरी मैं सप्त सागरों का विशेष महत्व है। शहर के भू माफियाओं ने धार्मिक एवं पौराणिक महत्व रखने वाले सप्तसागर को भी अपनी काली कमाई का जरिया बना लिया और शहर के कुछ सागर पर कब्जे कर उन्हें बेचना भी शुरू कर दिया। ऐसा ही एक सागर अंकपात मार्ग पर गोवर्धन सागर के नाम से धार्मिक ग्रंथ और सरकारी रिकॉर्ड में भी दर्ज है फिर भी एक भूमाफिया ने उक्त सागर पर 3 दशक पूर्व अपना कब्जा जमाते हुए करीब 40 लोगों को प्लाट बेच दिए थे भू माफिया अपने मंसूबों में कामयाब भी हो जाता लेकिन शहर के कुछ जागरूक नागरिकों की वजह से धार्मिक धरोहर गोवर्धन सागर को हड़पने की बद नियति का पर्दाफाश हो गया और मामला न्यायालय में गोवर्धन सागर अस्तित्व की लड़ाई को लेकर न्याय पाने के लिए इंतजार करते हुए देखा गया। हालांकि गोवर्धन सागर की अस्तित्व की लड़ाई में तीन दशक में कई उतार-चढ़ाव देखने को मिले देश के छोटे बड़े राजनेताओं ने भी हस्तक्षेप कर भू माफिया को संरक्षण देने का प्रयास किया किंतु सफलता हाथ नहीं लगी और आखिरकार गोवर्धन सागर को तालाब घोषित किया गया।
90 के दशक में गोवर्धन सागर जेसी पौराणिक धरोहर को नगर निगम के भ्रष्ट अधिकारियों ने एक भू माफिया को कुछ चंद रुपयों के लालच में आकर बेच देने का षड्यंत्र रचा था। तब वरिष्ठ भाजपा नेता पूर्व पार्षद समाजसेवी ओम अग्रवाल और उनके साथियों ने गोवर्धन सागर बचाओ संघर्ष समिति बनाकर धार्मिक धरोहर गोवर्धन सागर को बचाने हेतु जन आंदोलन छेड़ा साथ ही मामले को न्यायालय में भी ले जाया गया लेकिन चांदी के जूते खा चुके अधिकारी और राजनेता सप्तसागर के अस्तित्व पर खतरा बन कर मंडराते रहे और हर संभव कोशिश की थी की उक्त आंदोलन को धराशाई कर दिया जाए। इसके लिए आंदोलनकारी ओम अग्रवाल सहित अन्य 3 लोगों को प्लांट गिफ्ट में देने के ऑफर भी दिए गए किंतु मामला आंदोलनकारियों की धार्मिक भावनाओं की वजह से जम नहीं पाया और तीन दशक की लंबी लड़ाई जारी रही। इस मामले में एक याचिका11/2022 एक अन्य समाजसेवी के द्वारा लगाई गई जिसमें एनजीटी के द्वारा खसरा नंबर 1281 पर बने हुए तालाब को गोवर्धन सागर का तालाब घोषित किया।

पूर्व विधायक डॉ जोशी को काइनेटिक होंडा मिली….

इस मामले में जो चौंकाने वाले तथ्य हैं वह यह कि शहर के जिम्मेदार राजनेता भी धार्मिक धरोहर के अस्तित्व पर खतरा बनकर मंडरा रहे थे उनके द्वारा नगर निगम से खरीदी बिक्री करवाने के साथ आंदोलन को दबाने में मदद के नाम पर खरीददार भूमाफिया से लाल रंग की काइनेटिक होंडा अपने विधायकी कार्यकाल में हासिल की थी।

राजमाता सिंधिया ने भी किया था हस्तक्षेप

90 के दशक में ही राजमाता कि एक आम सभा गुदरी चौराहे पर आयोजित की गई थी। उक्त आम सभा को संबोधित करने के बाद राजमाता सिंधिया का भोजन कार्यक्रम खजूर वाली मस्जिद निवासी परिवार के यहां पर रखा गया था। उक्त भोजन यहां रखने के पीछे जो मूल उद्देश्य था वह यह कि राजमाता को गोवर्धन सागर के आंदोलन से जुड़े सभी लोगों से भोजन के दौरान बातचीत कर मामले को ठंडे बस्ते में डालने के लिए दबाव बनाया गया। किंतु मामला तब भी नहीं सुलझा और गोवर्धन सागर का आंदोलन जारी रहा।

वकील के मकान पर चलाएं निगम ने हथोड़े

यह मामला आंदोलन की वजह से तूल पकड़ गया और भू माफिया के मंसूबों पर पानी फिरता नजर आया ऐसे में निगम के भ्रष्ट अधिकारियों के माध्यम से गोवर्धन सागर बचाओ संघर्ष समिति की ओर से न्यायालय में पैरवी कर रहे एडवोकेट बाबूलाल पंड्या के इंदिरा नगर स्थित आवास पर नगर निगम ने हथौडे चला कर आंदोलनकारियों को भयभीत करने का प्रयास किया किंतु इस घटना के बाद भी आंदोलन यथावत जारी रहा

वी डी क्लॉथ मार्केट सोसाइटी ने भी बेच खाई तालाब की जमीन

एक तरफ भू माफिया से गोवर्धन सागर को बचाने के लिए संघर्ष समिति का आंदोलन जारी था तो दूसरी तरफ वी डी क्लॉथ मार्केट की सोसाइटी ने भी सागर की जमीन हड़पने में कोई संकोच नहीं किया। वी डी क्लॉथ मार्केट सोसायटी के कर्ताधर्ता होने क्लॉथ मार्केट से लगी हुई गोवर्धन सागर की जमीन पर करीब डेढ़ दर्जन दुकाने निर्मित कर उन्हें बेचने का कार्य बड़ी सहजता से किया। जबकि आंदोलन कर रही समिति के द्वारा प्रशासनिक अधिकारियों के साथ-साथ न्यायालय में भी उक्त मामले को रखा गया किंतु किसी भी जिम्मेदार अधिकारी ने इस मामले में हस्तक्षेप नहीं किया जिसके परिणाम स्वरूप दुकानें बनाकर बेच दी गई।