- उज्जैन, ताजा खबरें, शहर

उज्जैन जनपद चुनाव की आंख मिचोली पर वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश त्रिवेदी की समीक्षा रपट

Spread the love

*उज्जैन जनपद चुनाव*
*दबदवे पर दमदमा भारी*

*प्रकाश त्रिवेदी*

उज्जैन। उज्जैन जनपद के चुनाव में कांग्रेस से करारी हार के बाद अब लगने लगा है कि चुनाव मशीन बन चुकी भाजपा को अति-आत्मविश्वास, अधकचरे बड़बोले नेताओ पर भरोसा और नियम-प्रक्रिया के प्रति लापरवाही के कारण बहुमत होने पर भी शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा है।
पंचायती राज और सहकारिता अधिनियम के जानकर वैसे भी भाजपा में कम है इसलिए सत्ता में दो दशक होने के बाद भी भाजपा पंचायत और सहकारिता चुनाव में गच्चा खा जाती हैं। खासकर मालवा में ग्रामीण क्षेत्रों में भाजपा कमजोर ही दिखती है।
उज्जैन जनपद के चुनाव में सारी जिम्मेदारी प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. मोहन यादव की थी,उनका विधानसभा क्षेत्र होने के कारण उनपर पार्टी का भरोसा करना भी जायज ही था।
पर मंत्री जी *अतिरेक* का शिकार हो गए। दबाव और प्रभाव से 25 में से 13 सदस्य तो जुगाड़ लिए पर चुनाव अति-आत्मविश्वास और सिस्टम की सवारी करने की प्रवृत्ति के चलते चुनाव प्रक्रिया के कानूनी पक्ष पर ध्यान ही नही दिया।
फिर 13 में से चार पर अविश्वास भी भारी पड़ा। मंत्री जी की विधानसभा उज्जैन दक्षिण में ब्राह्मण-राजपूत निर्णायक मतदाता है उनकी उपेक्षा कर पिछड़े पर दांव खेल दिया लिहाजा 13 के अंदर भी बग़ावत का वायरस फैलने लगा।
ऐनवक्त पर भाजपा ग्रामीण के अनुभवी नेताओं पर भरोसा न कर अधकचरे ज्ञानियों को *कोच* बनाया गया, पार्टी ने जो प्रभारी नियुक्त किए थे उन्हें भी ज्यादा तवज्जों नही दी यहाँ तक कि उन्हें
*कथित रणनिति* से भी दूर ही रखा गया।
पंचायत अधिनियम में प्रॉक्सी वोटर के स्पष्ट प्रावधान होने के बाद भी जनपद सदस्यों के गैर-सम्बंधियों को प्रॉक्सी बनाया जिसे पीठासीन अधिकारी ने स्वीकार नही किया। फिर मूल मतदाता की उपस्थिति सुनिश्चित नही की,कारण भी बेतुके थे, जिसे कोविड बताया गया वो जनपद परिसर मैं ही घूम रहा था, अनपढ़ के निर्वाचन फार्म में उच्च शिक्षित होना पाया गया।
सरकार होने का लाभ लेने की मंशा से ही सारी क़वायद धरी की धरी रह गई।
इसके विपरीत कांग्रेस ने जिला पंचायत सदस्य और अध्यक्ष रहे विधायक महेश परमार और सालो से उज्जैन जनपद चला रहे राजेन्द्र वशिष्ठ पर भरोसा किया। दोनों ने नियम प्रक्रियाओं के तहत जायज आपत्तियों की रणनीति पर काम किया और पीठासीन अधिकारी को इस बात पर राजी कर लिया कि केवल निर्वाचित जनपद सदस्य ही मतदान प्रक्रिया में भाग ले सकेंगे। कांग्रेस भी कुछ सदस्यों के लिए प्रॉक्सी वोटर लाना चाहती थी अनुभवी परमार और वशिष्ठ ने तय किया कि सदस्य ही मतदान करेंगें।
कांग्रेस की इस रणनीति ने काम किया। भाजपा और मंत्री खेमा प्रशासन से लड़ने में व्यस्त रहा और कांग्रेस ने खेल कर दिया।
प्रशासन ने नियमों का हवाला देकर भाजपा के प्रॉक्सी वोटरों को अनुमति नही दी,इधर भाजपा के 9 सदस्य ही मतदान स्थल पर जा सके चार निर्वाचित सदस्य इधर-उधर भटकते रहे,नामांकन औऱ मतदान का समय निकल गया तब तक भाजपा और मंत्री खेमा *विपक्ष* की तरह प्रशासन से लड़ता-भिड़ता रहा।
बाज़ी हाथ से निकलती देख मंत्री जी आए,सल्तनत लूट चुकी थी।
शोर-शराबा किया,स्यापा किया सत्ता की दुहाई थी,दबाव बनाया पर कुछ हासिल नही हुआ। इस पर मंत्री जी का धरना पर बैठना लाज़िमी ही था,प्रभारी पूर्व विधायक राजेन्द्र भारती और नए सहयोगी जयसिंह दरबार भी साथ बैठे। *कारिंदे* की भूमिका में महामंत्री विशाल राजोरिया असफल रहे। उनके और अधिकारियों की निकटता में नियमों की बाध्यता आड़े आ गई।
कुलमिलाकर पार्टी, सरकार और मंत्री जी के दबदवे पर *दमदमा* भारी नज़र आया।
बहरहाल सबक यह है कि सत्ता और बुद्धिमता दोनों का गहरा रिश्ता है,ब्राह्मण-राजपूत कम ज्यादा हो सकते है पर रहेंगे निर्णायक ही,कम से कम चुनाव में प्रशासन कोई कोताही बरतने को तैयार नही है।
समझ और अनुभव का कोई तोड़ नही है।
उम्मीद है भाजपा और मंत्री ख़ेमा आत्मचिंतन करेगा।