- धार्मिक

महाग्रंथ महाभारत को दांत से लिखने पर एकदंताय के रूप में पूजनीय श्री गणेश

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बुद्धि के स्वामी, विद्या सुखदाता भगवान गणपति के जीवन का हर अध्याय उनके अनुपम रूप की तरह ही अद्भुत है। विद्या और लेखनी के अधिपति माने जाने वाले गणपति जी को सभी देवों में सबसे अधिक धैर्यवान और स्थिर माना जाता है। उनकी लेखन की शक्ति भी अद्वितीय मानी गई है। यही वजह है कि महर्षि वेदव्यास ने महाभारत के लेखन कार्य हेतु गणेश जी आग्रह किया
श्री गणेश जी के गुणों से संबद्ध एक कथा…
बात उस समय की है जब महर्षि वेदव्यास महाभारत नाम के महाकाव्य की रचना प्रारंभ करने जा रहे थे। अपने महाकाव्य के लिए वे एक ऐसा लेखक चाह रहे थे, जो उनके विचारों की गति को बीच में बाधित ना करे। इस क्रम में उन्हें भगवान गणेश की याद आई और उन्होंने आग्रह किया तब श्री गणेश उनके महाकाव्य के लेखक बनें। गणेश जी ने उनकी बात मान ली, लेकिन साथ ही एक शर्त रख दी कि महर्षि एक क्षण के लिए भी कथावाचन में विश्राम ना लेंगे। यदि वे एक क्षण भी रूके, तो गणेश जी वहीं लिखना छोड़ देंगे। महर्षि ने उनकी बात मान ली और साथ में अपनी भी एक शर्त रख दी कि गणेश जी बिना समझे कुछ ना लिखेंगे। हर पंक्ति लिखने से पहले उन्हें उसका मर्म समझना होगा। गणेश जी ने उनकी बात मान ली।
इस तरह दोनों ही विद्वान जन एक साथ आमने-सामने बैठकर अपनी भूमिका निभाने में लग गए। महर्षि व्यास ने बहुत अधिक गति से बोलना शुरू किया और उसी गति से भगवान गणेश ने महाकाव्य को लिखना जारी रखा। इस गति के कारण एकदम से गणेश जी की कलम टूट गई, वे ऋषि की गति के साथ तालमेल बनाने में चूकने लगे। इस स्थिति में हार ना मानते हुए गणेश जी ने अपना एक दांत तोड़ लिया और उसे स्याही में डुबोकर लिखना जारी रखा।
इसके साथ ही वे समझ गए कि उन्हें अपनी लेखन की गति पर थोड़ा अभिमान हो गया था और वे ऋषि की क्षमता को कम कर आंक रहे थे। महर्षि ने उनका घमंड चूर करने के लिए ही अत्यंत तीव्र गति से कथा कही थी। वहीं ऋषि भी समझ गए कि गजानन की त्वरित बुद्धि और लगन का कोई मुकाबला नहीं है। इसी के साथ उन्होंने गणेश जी को नया नाम एकदंत दिया।
दोनों ही पक्षों द्वारा एक-दूसरे की शक्ति, क्षमता और बुद्धिमतता को स्वीकार किए जाने के बाद समान लगन और उर्जा के साथ महाकाव्य के लेखन का कार्य होने लगा। कहा जाता है कि इस महाकाव्य को पूरा होने में तीन वर्ष का समय लगा। इन तीन वर्षों में गणेश जी ने एक बार भी ऋषि को एक क्षण के लिए भी नहीं रोका, वहीं महर्षि ने भी शर्त पूरी की।
महाकाव्य के दौरान जब भी उन्हें तनिक विश्राम की आवश्यकता होती, वे कोई बहुत कठिन अंतरा बोल देते। शर्त के अनुसार गणेश जी बिना समझे कुछ लिख नहीं सकते थे। इसीलिए जितना समय गणेश जी उस अंतरे को समझने में लेते, उतनी देर में ऋषि विश्राम कर लेते। माना जाता है कि महाभारत महाकाव्य कई अंतरे कहीं गुम हो गए हैं। इसके बावजूद आज भी महाभारत में 1 लाख अंतरे हैं।