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ज़बान की हिफाज़त में मुशायरे होते हैं कारगर

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इंदौर/ज़ुबान (भाषा) की हिफाज़त में मुशायरों की भूमिका को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। क्योंकि मुशायरों से अल्फ़ाज़ के रखरखाव को सीखने का मौका मिलता है। उक्त विचार क़लमकार ताहिर कमाल सिद्दीकी ने अखिल भारतीय मुशायरे की शमां रोशन करते हुए व्यक्त किये। इस मौके पर राजिक अंसारी,अनीस अंसारी,इक़बाल इब्बी,पाशा मियां प्रमुख रूप से उपस्थित थे। शहर में गुज़िश्ता रात शायरी के क़द्रदानों के लिए ख़ास रही। ख़ादिम-ए-मिल्लत कमेटी और बज़्मे साक़ी ने मिलजुलकर अखिल भारतीय मुशायरे की उम्दा महफ़िल सजाई। बज़्मे साक़ी के तजदीद साक़ी ने बताया नयापुरा जमातखाना में ऑल इंडिया मुशायरा हुआ। जिसमें बुरहानपुर के मशहूर शायर नईम अख़्तर ख़ादमी, मालेगांव के मुश्ताक़ अहमद मुश्ताक़, शरफ़ नानापारवी, डॉ. अनीता सोनी, अहमद निसार, एजाज़ अकमल, नूह आलम, क़मर साक़ी, ज़हीर राज़, शाहनवाज़ असीमी, रईस अनवर, अशफ़ाक़ रशीद, आदित्य ज़रख़ेज़, शादाब अहमद शादाब की शायरी सुनने को मिली। मुशायरे की निज़ामत (संचालन) बुरहानपुर के क़यामउद्दीन क़याम ने की।

बुरहानपुर के नामचीन शायर नईम अख़्तर ख़ादमी ने ख़ुद्दारी की बात कही-
वक़ार अपनी अना के बचा के आया हूँ/मैं सर झुका के नहीं सर उठा के आया हूँ।

मालेगांव के मुश्ताक़ अहमद ने महफ़िल लूटी,देखिये ये शेर-
कोई क़तरा उठे आगे तो आये/समंदर की जगह ख़ाली पड़ी है।

अनीता सोनी ने तरन्नुम में कलाम पढ़ा और कौमी एकता का पैगाम दिया-
क़ुरआन भी रखती हूँ सर पर मैं अक़ीदत से/गीता को भी मैं अपने सीने से लगाती हूँ।

ज़हीर राज़ ने भी अच्छा पढ़ा-
हुजरे में एहतराम से पहुंचे सियासी लोग/हम जैसे कुछ फ़क़ीर नुमाइश में आ गये।

कन्वीनर तजदीद साक़ी की शायरी पसन्द की गई,उन्होंने सुनाया-
मैं अलग दास्तां का हिस्सा हूँ/तू किसी और की कहानी है।

इस मौके पर शायर नूह आलम और शफाकत गुड्डू का सम्मान भी हुआ। आखिरी में ख़ादिम-ए-मिल्लत के हाजी इफ़्तेख़ार अंसारी ने सभी का शुक्रिया अदा किया।