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विदेशों में बसे भारतवंशियों ने चुनौतियों के बाद भी जीवित रखा है लोक परम्पराओं को – प्रो बीरसेन

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भारतीय लोक और जनजातीय साहित्य एवं संस्कृति : जनजीवन, समाज और विविध शैलियां पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी

उज्जैन /प्रतिकल्पा सांस्कृतिक संस्था द्वारा संजा लोकोत्सव के अंतर्गत अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन सम्पन्न हुआ। कालिदास संस्कृत अकादमी में आयोजित अंतरराष्ट्रीय शोध संगोष्ठी भारतीय लोक और जनजातीय साहित्य एवं संस्कृति : जनजीवन, समाज और विविध शैलियां विषय पर एकाग्र थी। मुख्य अतिथि डॉ बीरसेन जागासिंह, मॉरीशस, श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ऑस्लो, नॉर्वे, कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ अरुण कुमार उपाध्याय, भुवेश्वर, विशिष्ट अतिथि प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा, उज्जैन, प्रो कल्पना गवली, बड़ौदा, डॉ बहादुर सिंह परमार, छतरपुर एवं डॉ जगदीश चंद्र शर्मा थे।

मुख्य अतिथि डॉ बीरसेन जागासिंह, मॉरीशस ने कहा कि संस्कृति हृदय का विषय है। मॉरीशस के निवासियों की कई तरह की संस्कृतियाँ रही हैं। वहाँ बसे भारतवंशियों ने भारतीय लोक परम्पराओं के अनेक तत्वों को आज भी जीवित रखा है। फिजी, सूरीनाम, गुयाना जैसे देशों में अनेक प्रकार की चुनौतियों के बावजूद भारतीय लोक संस्कृति का संरक्षण किया जा रहा है। उन देशों में स्त्रियों ने लोक संस्कृति और परंपराओं को सजीव बनाए रखा है। मॉरीशस में यूनेस्को की अमूर्त विरासत में लोक साहित्य को मान्यता दिलाई गई है।

डॉ अरुणकुमार उपाध्याय, भुवनेश्वर के कहा कि लोकभाषा के शब्द बीते हुए समय और इतिहास को जोड़ने वाली कड़ियाँ हैं। लोग चले जाते हैं, लेकिन लोक भाषा और गीत जीवित रहते हैं। वैदिक साहित्य के अनेक शब्द आज भी लोक परम्परा के अंग बन हुए हैं। इतिहास की भ्रांतियों को समाप्त करने में लोक साहित्य और संस्कृति की महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।

मुख्य वक्ता प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि लोक एवं जनजातीय संस्कृति और साहित्य अमृत कलश के समान है, जो समस्त युग और परिवेश में नवजीवन का संचार करने की क्षमता रखते हैं। लोक-संस्कृति से कोई भी मुक्त नहीं है। कोई स्वीकार करे या न करे, सभी की अपनी कोई न कोई लोक-संस्कृति होती है। मानव सभ्यता के साथ प्रवहमान विविध परम्पराओं, बदलाव और सामाजिक सरोकारों की अभिव्यक्ति लोक साहित्य में मुखरित होती है।
प्रारम्भ में स्वागत भाषण एवं संस्था परिचय प्रतिकल्पा सांस्कृतिक संस्था की निदेशक डॉ पल्लवी किशन ने दिया। स्वागत अध्यक्ष डॉ पल्लवी किशन, सचिव श्री कुमार किशन, डॉ धर्मेंद्र जादौन, प्रवीण चतुर्वेदी आदि ने किया। संगोष्ठी के मुख्य समन्वयक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा, निदेशक डॉ पल्लवी किशन एवं सचिव कुमार किशन ने अतिथियों को स्मृति चिह्न अर्पित किए।

संगोष्ठी के तकनीकी सत्रों की अध्यक्षता डॉ कल्पना गवली, बड़ौदा एवं डॉ बीरसेन जागासिंह, मॉरीशस ने की। विशिष्ट अतिथि श्रीमती वसुधा गाडगिल, श्रीमती अंतरा करवड़े, इंदौर, डॉ अरुण कुमार उपाध्याय, भुवनेश्वर, डॉ जगदीश चंद्र शर्मा, डॉ बहादुर सिंह परमार, छतरपुर, श्रीमती देवंती जागासिंह, मॉरीशस थे।
संगोष्ठी में बीस से अधिक शोधपत्रों की प्रस्तुति देश के विभिन्न राज्यों से आए प्राध्यापकों और शोधकर्ताओं ने की। आयोजन में श्रीमती शारदा देवी जादौन की स्मृति में दस उत्कृष्ट शोध पत्रों के लिए प्रस्तुतकर्ताओं को पुरस्कृत किया गया। इनमें शामिल थे डॉ कारूलाल जमड़ा, जावरा, डॉ सुनीता जैन, सीतामऊ, निधि त्रिपाठी, डॉ सुनीता श्रीवास्तव, श्रीमती अंतरा करवड़े, इंदौर, श्री योगेश द्विवेदी, बरखा श्रीवास्तव, इंदौर, संदीप पांडे, मीतू चतुर्वेदी एवं श्यामलाल चौधरी। लोक एवं जनजातीय संस्कृति पर केंद्रित शोध आलेखों की प्रस्तुति डॉ रमेश चौहान, नीमच, डॉ रुपाली सारये, डॉ वसुधा गाडगिल, इंदौर, डॉ मेघा व्यास, डॉ सुदामा सखवार, शिक्षा देवी, डॉ श्रद्धा मिश्रा, डॉ रूपा भावसार, श्री गौरांग आदि ने की।
उद्घाटन सत्र का संचालन डॉ जगदीश चंद्र शर्मा ने किया। आभार प्रदर्शन संस्थाध्यक्ष डॉ शिव चौरसिया ने किया। तकनीकी सत्रों का संचालन डॉक्टर संदीप पांडे एवं डॉ श्रीराम सौराष्ट्रीय ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ रुपाली सारये ने किया।