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भारतीय संस्कृति के अनुरूप यूपी के उद्योगपति ने पुत्र का 15 वां जन्मोत्सव उज्जैन में मनाया

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उज्जैन/ पाश्चात्य संस्कृति की चकाचौंध से अपने परिवार को कुनबे को और परिचितों को एक संदेश के साथ दूर रखने के लिए उत्तर प्रदेश के हाथरस के मूलनवासी  मुन्ना लाल जी ने बरसों बरस पहले अपने बेटे संजीव रावत के जन्मोत्सव को भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म को ध्यान में रखते हुए मनाने के लिए धार्मिक स्थलों पर आयोजन आरंभ किए। और अनवरत हर जन्मदिन को अलग-अलग शहर के धार्मिक स्थानों पर परिवार तथा परिचितों के साथ मनाने की अनु की परंपरा शुरू की जिसे आज उनके युवा पुत्र प्रसिद्ध उद्योगपति संजीव रावत सजीव रखे हुए हैं। आज धार्मिक एवं पौराणिक महत्व रखने वाली अवंतिका नगरी में संजीव रावत अपने पिता के द्वारा शुरू की गई परंपरा का निर्वहन करते हुए अपने पुत्र अथर्व रावत का 15 वा जन्मदिन बनाने के लिए 3 बस से रिश्तेदार तथा परिचितों को लेकर शक्तिपीठ मां जगदंबा हरसिद्धि मैया तथा बाबा महाकाल के दरबार में पहुंचे जहां पर उन्होंने मैया को श्रंगार तथा बाबा के दरबार को फूलों से सजवा कर अपने सभी शुभचिंतकों के साथ भारतीय संस्कृति के अनुरूप धार्मिक अनुष्ठान के साथ संतो की उपस्थिति में दो दिवसीय यात्रा के साथ जन्मोत्सव मनाया। इस प्रतिनिधि से चर्चा करते हुए उद्योगपति संजीव रावत ने बताया कि पहला जन्मदिन विंध्यांचल शक्तिपीठ ,दूसरा मैहर माता जी, तीसरा वृंदावन, चौथा चौथा शाकंभरी शक्तिपीठ, पांचवा अंबाजी ,छठवां बहुचराजी, सातवां कात्यायनी मैया वृंदावन, आठवां नेपाल जोगेश्वरी, पशुपतिनाथ, नवां नैमिषारण्य, दसवां कुरुक्षेत्र भद्रकाली, 11वां सरिस्का अंबाजी, बारहवां त्रिपुरमालिनी जालंधर, तेरहवां हाथरस में ,14वां आगरा में और पंद्रहवां मां हरसिद्धि एवं बाबा महाकाल के श्री चरणों में मनाया। 

संजीव रावत ब्राम्हण परिवार से हैं और इनके पिताजी स्वर्गीय मुन्ना लाल जी रावत पूरे भारत के परशुराम जयंती सभा के संस्थापक सदस्य रहे हैं

इस जन्मोत्सव की एक और विशेषता देखने को मिली यहां पर उपस्थित स्नेही जनों के लिए भोजन सामग्री बनाई गई वह सभी गाय के घी और दूध से निर्मित थी इस संबंध में श्री रावत का कहना है कि वे गो संरक्षण के अपने पिता से मिले संस्कार को अपनाए हुए हैं कार्य कर रहे हैं। आप ने देशवासियों को संदेश देते हुए कहा कि फाइव स्टार होटल मैं जन्म उत्सव मनाना और एक धार्मिक स्थान पर जन्मदिन मनाना उसका धार्मिक लाभ मिलता ही है साथ ही साथ भारतीय संस्कृति को भी हम बनाए रख सकते हैं