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ज्योतिष में हृदय रोग/ हार्ट अटैक के लिए जिम्मेदार ग्रह, योग

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????????नवीन सांखला ????????

????रोग के क्षेत्र में चिकित्सा विज्ञान के साथ ही ज्योतिष विज्ञान के ग्रह एवं नक्षत्रों की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ????

मे नवीन सांखला आपको बताते हैं कि जन्म कुण्डली से इस बात को जानने में बहुत सहायता मिलती है कि व्यक्ति को कब , क्यों और किस प्रकार के रोगो की सम्भावना है. इसी प्रकार नक्षत्रों का भी रोग विचार करने में महत्वपूर्ण स्थान होता है जिसमें रोग की अवधि और उसके ठीक होने के समय को भी जाना जा सकता है.

????कुंडली के प्रथम भाव शरीर, चौथा व पांचवां छाती व हृदय का, छठा भाव रोग का माना गया है। बारहवां भाव अस्पताल और व्यय का होता है। आठवां मृत्यु स्थान कहलाता है। यदि इन तीनों भावों को दशाएं एक साथ आने पर बीमारी की सम्भावना ज्यादा प्रबल होती है |
मे नवीन सांखला आपको बताते हैं कि जिस व्यक्ति की जन्मकुंडली में लग्न(देह),चतुर्थेश(मन) और पंचमेश(आत्मा) इन तीनों की स्थिति अच्छी होती है,वह सदैव स्वस्थ जीवन व्यतीत करता है. |

????शारीरिक दोष होने के लिए कई ग्रह ज़िम्मेदार होते हैं. रोग तब होते हैं जब ये गृह ‘सक्रिय’ होते हैं (महादशा, अंतरदशा, गोचर इत्यादि). ये ग्रह कुंडली में कौन से स्थान में हैं, इस बात से रोग का निर्धारण होता है.|

????ज्योतिषशास्त्र में किसी भी रोग की जानकारी के साथ उसके घटने के समय , अच्छे – बुरे परिणाम एवं रोग की अवधि और उसके ठीक होने के समय की भी जानकारी आवश्यक होती है। इसके लिए कुंडली में महादशा एवं ग्रहो का गोचर दोनों का देखा जाना अति आवश्यक है | ज्योतिषी के अनुसार सभी ग्रह अपनी दशा-अन्तर्दशा में सभी प्रकार का फल प्रदान करते हैं।

????हृदय रोग के अनेक ज्योतिष योग हैं जोकि इस प्रकार हैं????

???? ज्योतिष में हृदय रोग के लिए जिम्मेदार कुछ ग्रह, योग और कुंडली के स्थान होते हैं।
कुंडली में चतुर्थ भाव, पंचम भाव, चतुर्थ एवं पंचम के स्वामी अगर अशुभ ग्रहों की दृष्टि, या साथ की वजह से दूषित होते है, तो हृदय में रोग हो सकता है।

????कुण्डली में प्रमुख हृदय रोग संबंधी ज्योतिष योग

1 ????लग्नेश चौथे भाव में निर्बल हो, भाग्येश, पंचमेश निर्बल हो, षष्ठेश तृतीय भाव में हो, चतुर्थ भाव पर केतु का प्रभाव हो तो जातक हृदय रोग से पीड़ित होता है।

2 ????शनि व गुरु त्रिक भाव अर्थात्‌ ६, ८, १२ के स्वामी होकर चौथे भाव में स्थित हों।

3???? सूर्य-शनि की युति त्रिक भाव में हो या बारहवें भाव में हो तो यह रोग होता है।

4 ???? अशुभ चन्द्र चौथे भाव में हो एवं एक से अधिक पापग्रहों की युति एक भाव में हो।

5 ????पंचम भाव में नीच का बुध राहु के साथ अष्टमेश होकर बैठा हो, चतुर्थ भाव में शत्रुक्षेत्रीय सूर्य शनि के साथ पीड़ित हो, षष्ठेश मंगल भाग्येश चन्द्र के साथ बैठकर चन्द्रमा को पीड़ित कर रहा हो, व्ययेश छठे भाव में बैठा हो तो जातक को हृदय रोग अवश्य होता है।

6???? षष्ठेश की अष्टम भाव में स्थित गुरु, सूर्य, बुध, शुक्र पर दृष्टि हो तो जातक हृदय रोग से पीड़ित होता है।

7???? शनि दसवीं दृष्टि से मंगल को पीड़ित करे, बारहवें भाव में राहु तथा छठे भाव में केतु हो, चतुर्थेश व लग्नेश अष्टम भाव में व्ययेश के साथ युत हो तो भी हृदय रोग होता है।

8 ????कुंडली का चौथा भाव और दसवां भाव हृदय कारक अंगों के प्रतीक हैं। चतुर्थ भाव का कारक चन्द्र भी आरोग्यकारक है। दशम भाव के कारक ग्रह सूर्य, बुध, गुरु व शनि हैं।

9 ????पाचंवा भाव छाती, पेट, लीवर, किडनी व आंतों का है, ये अंग दूषित हों तो भी हृदय हो हानि होती है। यह भाव बुद्धि अर्थात्‌ विचार का भी है। गलत विचारों से भी रोग वृद्धि होती है।

10???? जन्म नक्षत्र मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी हों तो हृदय रोग अत्यन्त पीड़ादायक होता है।

11???? मेष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, कुम्भ, मीन राशियां जिन जातकों की हैं, उनका यदि मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, कुम्भ या मीन लग्न हो तो उनको हृदय रोग अधिक होता है।

12 ????भरणी, कृत्तिका, ज्येष्ठा, विशाखा, आर्द्रा, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्रा हृदय रोग कारक हैं।

13 ????एकादशी, द्वादशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा एवं अमावस्या दोनों पक्षों की हृदय रोग कारक हैं। जिन जातकों का जन्म शुक्ल में हो तो उन्हें कृष्ण पक्ष की उक्त तिथियां एवं जिनका जन्म कृष्ण में हो तो उन्हें शुक्ल पक्ष की उक्त तिथियों में यह रोग होता है।

14???? राहु और केतु अचानक घटना घटाने का करक है जीवन में घटने वाली हार्ट अटैक की घटना भी अचानक /आकस्मिक ही घटती हैं जोकि राहु या केतु के प्रभाव से ही घटती हैं। हार्ट अटैक भी अचानक बिना किसी पूर्व सूचना के आता है, इसीलिए राहु या केतु का प्रभाव आवश्यक है।

15???? यदि षष्ठेश ग्रह केतु के साथ हो तथा गुरु, सूर्य, बुध, शुक्र अष्टम भाव में हों, चतुर्थ भाव में केतु हो तो हृदय रोग होता है।

16???? लग्नेश शत्रुक्षेत्री या नीच राशि में हो, मंगल चौथे भाव में हो तथा शनि पर पापग्रहों की दृष्टि हो तो जातक को हृदय रोग होता है।

17 ????स्थिर राशियों में सूर्य पीड़ित हो तो भी हृदय रोग होता है।अधिकांश सिंह लग्न वालों को हृदय रोग होता है।

18???? चौथे भाव में राहु या केतु स्थित हो तथा लग्नेश पापग्रहों से युत या दृष्ट हो तो हृदय पीड़ा होती है।

19 ???? लग्नेश चौथे हो या नीच राशि में हो या मंगल चौथे भाव में पापग्रह से दृष्ट हो या शनि चौथे भाव में पापग्रहों से दृष्ट हो तो हृदय रोग होता है।

20 ????सूर्य हृदय का प्रतिनिधित्व करता है, जिसका भाव पंचम है। जब पंचम भाव, पंचमेश तथा सिंह राशि पाप प्रभाव में हो तो हार्ट अटैक की सम्भावना बढ़ जाती है।

21???? यदि लग्न में शुभ ग्रह है और लग्नेश बलवान है तो इस रोग की संभावना कम रहती है और पहले भाव में क्रूर ग्रह या मारकेश की दृष्टि या युति हो तो हृदय रोग की संभावना प्रबल रहती है। पहले भाव में ही सूर्य, मंगल, राहू, शनि ग्रहों की युति हो या दृष्टि हो या छठे भाव का स्वामी स्वयं लग्न में हो तो भी हार्ट संबंधी समस्याओं से बचना कठिन रहता है।

22 ????ज्योतिष में राहु, केतु, शनि, गुरु धीमी गति वाले ग्रह हैं। मंगल, सूर्य, चंद्र, बुध, शुक्र तेज गति वाले हैं। हृदय का मुख्य काम खून का संचार करना है एवं खून एक जलीय पदार्थ है। अतः इसका संबंध जलीय राशि कर्क, वृश्चिक एवं मीन से बना रहेगा।
—— अन्य कई कारण हो सकते है

????यदि कुंडली में अगर हार्ट सम्बन्धी समस्या के योग है तो सबसे पहले आप अपने डॉक्टर से संपर्क करें उसके पश्चात ही किसी ज्योतिषीय उपाय की ओर ध्यान दें।

????जन्मकुंडली में रोग उत्पन करने वाले ग्रहो के निदान के लिए पूजा, पाठ, मंत्र जप, हवन( यज्ञ ), यंत्र , विभिन्न प्रकार के दान एवं रत्न आदि साधन ज्योतिष शास्त्र में उल्लेखित है।
कुशल ज्योतिषी की सलाह पर बीमारी से सम्बंधित भाव , भावेश तथा कारक ग्रह से सम्बंधित ज्योतिषीय उपाय करते हुए रोग के प्रभाव को कम किया जा सकता है ।