हाटपिपलिया / देवास जिले की हाटपिपलिया तहसील में एक ऐसी परंपरा का निर्वहन हो रहा है जिसे किसी चमत्कार से कम नहीं कहा जा सकता ।
देव झुलनी ग्यारस पर सभी मंदिरों के ढोल परंपरा अनुसार हाटपिपलिया के नरसिंह घाट पर पहुंचते हैं । इसी क्रम में भगवान नरसिंह का ढोल भी परंपरा अनुसार यहां लाया जाता है । भगवान नरसिंह की करीब साढे 7 किलो वजन की पाषाण प्रतिमा को पुजारी के द्वारा प्रचलित परंपरा के अनुसार नदी में दूर ले जाकर छोड़ा जाता है ।यह प्रतिमा पानी में तैरती हुई पुनः बहाव के विपरित दिशा में खड़े हुए पुजारी के पास पहुंच जाती है । इस धार्मिक परंपरा का निर्वहन तीन बार किया जाता है । ऐसी मान्यता है कि तीन बार प्रतिमा को पुजारी के द्वारा पानी में छोड़ने के बाद बहुत दिनों बाद पुजारी के पास आ जाती है तो क्षेत्रीय निवासियों का पूरा वर्ष अच्छा बीच का है । प्रतिमा दो बार पुजारी के पास वह कर आती है तो 8 माह अच्छे से बीते हैं और प्रतिमा केवल एक बार बनकर आती है तो चार माह अच्छे से व्यतीत होते हैं । सदियों से इस चमत्कारिक परंपरा का निर्वहन किया जा रहा है और इसे देखने के लिए हाटपिपलिया के नरसिंह घाट पर हजारों की तादाद में श्रद्धालु मौजूद रहते हैं । यहीं पर विसर्जन की इस चमत्कारी पूजा के बाद प्रथम हार के लिए बोली लगाई जाती है इस बार की बोली 1 लाख 1 हजार 1 रुपए की समाजसेवी यशराज टोंग्या ने उठाई है। जिनके द्वारा बोली की राशि देने के पश्चात भगवान नरसिंह की पाषाण प्रतिमा को पुष्प हार अर्पित किया गया ।